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भारत का पहला वाइल्डलाइफ ओवरपास कॉरिडोर: रणथंभौर टाइगर रिजर्व के पास एक बड़ी पहल

 भारत का पहला वाइल्डलाइफ ओवरपास कॉरिडोर: रणथंभौर टाइगर रिजर्व के पास एक बड़ी पहल



भारत जैसे जैव विविधता वाले देश में वन्यजीवों की सुरक्षा हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है। खासकर जब सड़कों और हाइवे का विस्तार होता है, तब जानवरों और इंसानों के बीच टकराव की संभावना और बढ़ जाती है। लेकिन अब इस दिशा में एक बड़ी और सराहनीय पहल की गई है – दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर स्थित रणथंभौर टाइगर रिजर्व के पास भारत का पहला वाइल्डलाइफ ओवरपास कॉरिडोर बनाया गया है।


यह कॉरिडोर 12 किलोमीटर के हिस्से में फैला है और इसमें 5 ओवरपास और 1.2 किलोमीटर लंबा अंडरपास शामिल हैं। इसका उद्देश्य यह है कि बाघ, भालू, शेर और चीता जैसे बड़े वन्यजीव अब सड़क को बिना खतरे के पार कर सकें। यह न केवल जानवरों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करता है बल्कि एक्सप्रेसवे पर चलने वाले यात्रियों के लिए भी राहत की बात है।



इस पहल की ज़रूरत क्यों थी?

भारत में पिछले कुछ दशकों में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास ने गति पकड़ी है। हर जगह हाईवे, रेलवे और इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाए जा रहे हैं। लेकिन इन विकास कार्यों का असर जंगलों और वन्यजीवों पर भी पड़ा है। जब जंगल दो हिस्सों में बंट जाते हैं, तो जानवरों की आवाजाही रुक जाती है।


इसी वजह से कई बार जानवर सड़क पार करते हुए हादसों का शिकार हो जाते हैं। सिर्फ यही नहीं, इससे उनकी प्राकृतिक जीवनशैली, प्रजनन और भोजन खोजने की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है।





वाइल्डलाइफ ओवरपास क्या होता है?

वाइल्डलाइफ ओवरपास एक ऐसी संरचना होती है जो जंगल के एक हिस्से को दूसरे हिस्से से जोड़ती है। यह ओवरपास इंसानों के लिए नहीं, बल्कि जानवरों के लिए बनाए जाते हैं। इन ओवरपासों को पेड़-पौधों से ढका जाता है ताकि जानवरों को लगे कि वे जंगल में ही चल रहे हैं।


इसी तरह अंडरपास भी बनाए जाते हैं, जो सड़क के नीचे से जानवरों को सुरक्षित गुजरने का रास्ता देते हैं। यह पूरी संरचना ‘ग्रीन ब्रिज’ के नाम से भी जानी जाती है।



दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे और यह कॉरिडोर

दिल्ली से मुंबई को जोड़ने वाला यह एक्सप्रेसवे देश के सबसे आधुनिक और तेज़ हाइवे में से एक है। जब यह सड़क रणथंभौर टाइगर रिजर्व के पास से गुजरती है, तो वहां की वन्यजीव विविधता को ध्यान में रखते हुए इस 12 किलोमीटर लंबे हिस्से में वाइल्डलाइफ कॉरिडोर का निर्माण किया गया।


इसमें 5 ओवरपास बनाए गए हैं और कुल 1.2 किलोमीटर लंबा अंडरपास भी शामिल है। इससे जानवर बिना किसी मानवीय संपर्क के एक जंगल से दूसरे जंगल तक जा सकते हैं। यह पूरी संरचना नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) और पर्यावरण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के तहत बनाई गई है।




किन जानवरों को मिलेगा लाभ?

इस वाइल्डलाइफ ओवरपास से विशेष रूप से निम्नलिखित जानवरों को लाभ मिलेगा:

बाघ (Tiger): रणथंभौर टाइगर रिजर्व में बड़ी संख्या में बाघ मौजूद हैं। उनके लिए ये सुरक्षित रास्ते जीवनदायी साबित होंगे।

भालू (Sloth Bear): ये अक्सर रात को सड़क पार करते हैं और दुर्घटनाओं का शिकार बनते हैं। अब वे बिना डर के सुरक्षित पार कर सकेंगे।

शेर और चीता (Lion & Cheetah): यद्यपि ये इस क्षेत्र में दुर्लभ हैं, लेकिन भविष्य में इनकी आवाजाही को भी सुरक्षित बनाया जा रहा है।



पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर सकारात्मक प्रभाव

इस तरह के वाइल्डलाइफ कॉरिडोर से पूरे इकोसिस्टम को संतुलन मिलता है। जब जानवरों की आवाजाही बाधित नहीं होती, तो वे अपनी प्राकृतिक जीवनशैली को जारी रख पाते हैं। इससे न केवल प्रजनन चक्र बना रहता है, बल्कि शिकार-शिकारी का संतुलन भी बना रहता है।


इसके अलावा, यह परियोजना पर्यावरण के अनुकूल निर्माण तकनीकों का उदाहरण भी है, जहां विकास और प्रकृति साथ-साथ चलते हैं।



भविष्य की राह और दूसरे राज्य

इस सफलता को देखकर अन्य राज्यों में भी वाइल्डलाइफ ओवरपास या अंडरपास बनाने की मांग तेज हो गई है। उत्तराखंड, कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने भी अपने नेशनल हाइवे या जंगल क्षेत्रों में इस तरह की संरचनाओं की योजना बनाना शुरू कर दिया है।


अगर यह मॉडल पूरे देश में लागू हो जाए, तो भारत वन्यजीव संरक्षण में एक नया उदाहरण पेश कर सकता है।



निष्कर्ष

रणथंभौर टाइगर रिजर्व के पास बना यह वाइल्डलाइफ ओवरपास कॉरिडोर सिर्फ एक निर्माण परियोजना नहीं, बल्कि यह एक संदेश है – कि विकास और पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। अगर सही योजना, सोच और तकनीक का इस्तेमाल हो, तो हम दोनों के बीच संतुलन बना सकते हैं।


यह पहल दिखाती है कि भारत अब अपने वन्यजीवों को लेकर गंभीर है और उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहा है। उम्मीद है कि यह पहल एक नई दिशा दिखाएगी और देशभर में वन्यजीवों की रक्षा के लिए और भी ठोस कदम उठाए जाएंगे।

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